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सोशल मीडिया और यंगिस्तान

आज का दौर डिजिटल इंडिया की ओर अग्रसर होने का है ऐसे में क्या बच्चा, युवा और क्या वयस्क, इस माध्यम के सुलभ और सरल होने के कारण सभी इसका उपयोग बढ़-चढ़ कर करना चाहते हैं जो आज के समय में जरूरी भी है। आखिर वर्चुअल वर्ल्ड जन क्रांति का माध्यम भी तो है जो आपको आसानी से अपने विचार समाज के सामने रखने का अवसर देता है , लेकिन इंसानी फ़ितरत है “प्रकृति हो या टेक्नोलॉजी” जब आसानी से पहुंच में हो, तो उपयोग से दुरुपयोग का सफर बड़ी जल्दी तय हो जाता है। अब सोचने वाली बात यह है की आसानी से सोशल प्लेटफॉर्म पर अब्यूसिव, फेक, अश्लील सामग्री युवा भारत को किस तरफ ले जा रही है? आत्माभिव्यक्ति के नाम पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, मनोरंजन के नाम पर क्या यंगिस्तान को कहीं “गुड फॉर नथिंग”,की कतार में तो खड़ा नहीं कर रहे? क्या युवाओं के मन मस्तिष्क को कुंठित तो नहीं कर रहा,ऐसे में युवा भारत कहाँ तक विश्लेषणात्मक पक्षाघात से खुद को बचा पाएगा ?
आजकल सुबह, चिड़ियों की चहचहाहट के साथ- साथ सोशल मीडिया पर आए नोटिफिकेशन्स की घंटी से भी होती है। फिर आधा से पौना घंटा लाइक्स, शेयर्स और कमेंट की दीदार में निकल जाते हैं। सुनने में यह व्यंगात्मक जरूर है लेकिन सच भी है। आज सोशल मीडिया कहीं न कहीं सूचना सम्प्रेक्षण और कनेक्टिविटी के मामलों में अब मीडिया से भी ज्यादा प्रचलित है। शायद यही कारण है कि क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, क्या प्रिंट,क्या जनता जनार्दन, प्रशासन और सरकार आज सभी सूचना सम्प्रेक्षण के लिए बढ़ चढ़ कर सोशल मीडिया ग्राउंड (फेसबुक, ट्वीटर,यूट्यूब,वॉट्सऐप,इंस्टा आदि)का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन सोचने वाली बात है कि टेक्नोलॉजी की कार पर सवार हम सभी, क्या इस डिजिटल क्रांति का उपयोग जिम्मेदारी से कर रहेहैं? खास कर 15  से 25 साल के किशोर और युवा क्या इस सोशल मीडिया के ग्राउंड का उपयोग सहजता से कर पा रहे हैं? हाल ही में टिकटॉक की कुछ ऐसी वीडिओज़ आग की तरह फैली जो रेप, एसिड अटैक और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देती दिखी,लेकिन इसी जन क्रांति के मंच ‘ट्विटर’ पर जबरजस्त विरोध के बाद टिकटॉक की तरफ से कड़ी करवाई हुई और उस वीडियो और अकाउंट को डिलीट कर दिया। लोगों ने आक्रोशित होकर इस कदर #बैनटिक्टोकइंडिया को ट्रेंड किया की इस एप की रेटिंग को गूगल तो इसके एक मिलियन से ज्यादा रिव्यु को डिलीट करके ठीक करना पड़ा। (स्रोत “बीबीसी न्यूज़” और ‘@NorbertElekes’ ट्वीट 22 मई 2020) इस वाकये के बाद क्या ये विचारणीय नहीं कि ‘अश्लीलता के साथ अपराध को बढ़ावा देने वाले इस तरह के सोशल प्लेटफॉर्म देश के युवाओं को “गुड फॉर नथिंग” की कतार में तो नहीं ला रहे? और एक प्रश्न भी कि, वर्तमान परिस्थिति में सूचना अधिभार, फेक और फैक्ट के चक्रव्यूह से युवाभारत विश्लेषणात्मक पक्षाघात से कैसे और कब तक खुद को बचा पाएगा?
ऐसा ही कुछ फेसबुक,ट्विटर और इंस्टा का हाल है हालांकि ट्विटर क्योंकि शायद अभी मॉस की पहुंच में नहीं है इसलिए स्तर में उतनी गिरावट नहीं आयी है, लेकिन “अति और सुलभता” के नतीजों से तो हम सभी वाक़िफ हैं। ‘फेसबुक’ जो कभी सोशल कनेक्टिविटी का बेहतरीन साधन और अपने दूर के रिश्तेदारों से जुड़ने का उम्दा विकल्प हुआ करता था,अब एक ही छत के नीचे बैठे साथी से इज़हार-ए-मोहब्बत का ज़रिया बन बैठा है। खैर, अभिव्यक्ति और उसके माध्यम को चुनने का हक़ सभी को है। बस सोचने वाली बात ये है कि आप जिस तरह की अभिव्यक्ति इस प्लेटफार्म  पर कर रहे हैं वह समाज के लिए भी सहज हो।
“स्टैटिस्टा” के अनुसार 136 बिलियन की आबादी वाले हमारे भारत में आज इस वर्चुअल वर्ल्ड (सोशल मीडिया )  के तक़रीबन 376.1 मिलियन यूजर हैं जिसमें अकेले फेसबुक के 346.2  मिलियन,यूट्यूब के 265.1 और ट्विटर के करीब 13 .15 मिलियन यूजर हैं। इन आंकड़ों के साथ ग्लोबल वेब इंडेक्स के अनुसार आज भारत का युवा सोशल मीडिया पर एंटरटेनमेंट की तलाश में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।( स्रोत ‘द टेलीग्राफ’)
आज के दौर में सोशल मीडिया भारतीय युवाओं के जीवन का अभिन्न अंग है। इंटरनेट का उपयोग शिक्षा, और सूचना आदान -प्रदान से कहीं ज्यादा ,मनोरंजन की तलाश में तब्दील हो चूका है। ऐसा नहीं है कि डिजिटल इंडिया केवल खतरे की ही घंटी है कहीं न कहीं ये उन मुद्दों को सामने लाने का जनमंच भी है जो भीड़ की अनसुनी को गूंज के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन मुक्त रूप से प्राप्त ‘फेक नैरेटिव’ की भरमार, अश्लील सामग्री का ट्रेंड और बेलगाम जन अभिव्यक्ति मंच जिसमें आम जन सच और भ्रम के बीच झूलता दिखाई देता है जो युवा भारत को किस तरफ ले जाएगी?  ये सोचने का विषय है। ऐसे मे समाज को,विशेष तौर पर यंगिस्तान को इस वर्चुअल वर्ल्ड के उपयोग पर आत्मसंयम का पाठ पढ़ना और सरकार द्वारा निर्धारित निर्देश और फ्रेमवर्क को समझना का बेहद जरूरी हो जाता है।
(लेखिका आकाशवाणी दिल्ली में रेडियो जॉकी हैं। युववाणी का विशेष कार्यक्रम करती हैं)
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