
नई दिल्ली :
आज मुझे मेरे अस्तित्व पर गुमान है, हो भी क्यों न? मेरे अस्तित्व का निर्माण तो ऐसे महर्षि ने किया है, जिसके अनुसार सम्पूर्ण वसुधा ही अपना घर है, शायद इसीलिए लिए उस महर्षि को सारा संसार गुुुरुदेेव कहता आ रहा है। यही नहीं मेरे जन्म दाता में कभी भी गुुुरुदेेव होने का अभिमान रंच मात्र भी न आया। उपदेश से अधिक कर्म में विश्वास के कारण ही मेरे जन्म-दाता ने मुझे बहुत मन से शांति निकेतन में ऐसा गढ़ा कि ,सच में ही मैं ज्ञान के पिपासु चातकों का नीड़ बन बैठा।
वाह गुुुरुदेेव ने मुझे कितने प्यार से सजाया संवारा ,चारों तरफ नैसर्गिक वातावरण, सुंदर-सुंदर हरे भरे वृक्ष और चहचहाते पंक्षियों का कलरव मुझे आज भी रोमांचित कर देता है। गुुुरुदेेव ने अपने पूज्य पिता महर्षि देवेन्द्र नाथ टैगोर के पुण्य साधना स्थल, शांति निकेतन का विस्तार कर, मुझे मेरे स्वरूप में जीवंत कर दिया। गुरूदेव ने मेरा नामकरण विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में किया।
ब्रह्म विद्यालय के शैशवावस्था से विस्तार लेकर मैं विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया –
युगों- युगों से माँ भारती का वैश्विक स्वरूप आज मेरे रूप में साकार हो उठा। मुक्त गगन के तले दर्शन, कला, विज्ञान की विशद विवेचना को सुन मैं अपने गौरव पर इतरा उठा। मेरा जन्म ही वैदिक ब्रह्म चेतना दर्शन से हुआ, शायद इसीलिए गुुुरुदेेव ने मेरे वर्तमान स्वरूप के पूर्व ही ब्रह्म विद्यालय के रूप में माँ भारती की आत्मा वैदिक संस्कृति की पीठिका स्थापित कर दी।
ब्रह्म विद्यालय के शैशवावस्था से विस्तार लेकर मैं विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया और वैदिक संस्कृति के वसुधैव- कुटुम्बकम को चरितार्थ करने लगा। सन् 1921 में मैं अपने नये रूप में अलंकृत हुआ। मेरे जन्म के पीछे गुुुरुदेेव के आदर्श परक प्रयोगात्मक प्राकृतिक दर्शन और आधुनिक दर्शन का गहन वैश्विक आत्म-चिंतन है, इसीलिए मेरा आदर्श वाक्य है – ”
यत्र विश्वं भवत्येकनीड़म” अर्थात (सारा विश्व एक घर है)
- मेरे स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य संक्षेप में सत्य को आत्मसात करने के लिए मानव मस्तिष्क का अध्ययन करना और विभिन्न दृष्टिकोणों के कसौटी पर परख कर एक सत्य का उद्घाटन करना।
- मेरे स्थापना के पीछे प्राचीन भारतीय संस्कृति में समाविष्ट एकता के आधारभूत तत्व का तात्विक विवेचना एवं शोध कर उनके सामाजिक स्थापना के लिए वातावरण सृजित करना।
- यही नहीं एशिया परिक्षेत्र में रचे बसे जीवन मूल्यों और विचारों को समेकित कर पश्चिमी राष्ट्रों से समन्वय स्थापित करना मेरे स्थापना का एक महत्वपूर्ण कारण रहा ।
- मेरे शिल्पी गुुुरुदेेव ने विश्व शाांति की संभावनाओं को तलाशने एवं पूर्व – पश्चिम में संपर्क स्थापित करने तथा स्वतंत्र विचार-विमर्श की दृढ़ एकता स्थापना के लिए ही मुझे ब्रह्म विद्यालय से विश्वविद्यालय का रूप दिया।
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मुझे पश्चिमी संस्कृति के साथ ही आध्यात्मिक वातावरण में स्थापित किया –
गुुुरुदेेव ने उच्च आदर्शों एवं मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए शान्ति निकेतन में वैश्विक सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना करने के लिए धर्म, साहित्य, इतिहास, विज्ञान के साथ-साथ हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि सभ्यताओं के अध्ययन और शोधकार्य पर जोर देने हेतु ही मुझे पश्चिमी संस्कृति के साथ ही आध्यात्मिक वातावरण में स्थापित किया ।
चिंतन में मेरे जनक गुरूदेव टैगोर के चिंतन की झलक दिखाई दे रही –
आज मेरे स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने वेद से विवेकानंद तक का उद्धरण देकर मेरे स्वरूप को वस्तुतः उद्घाटित किया। प्रधानमंत्री मेरे संवैधानिक संरक्षक भी हैं, मुझे उनके चिंतन में मेरे जनक गुरूदेव रविन्द्र नाथ टैगोर के चिंतन की झलक दिखाई दे रही है। मेरे जनक गुुुरुदेेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने मेरे बारे में सच ही कहा है –
दूसरों की संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व अपनाने में भारत सदा से उदार रहा –
“विश्व भारती भारत का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ भारत की बौद्धिक सम्पदा सभी के लिए उपलब्ध है। अपनी संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व दूसरों को देने में और दूसरों की संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व अपनाने में भारत सदा से उदार रहा है। विश्व भारती भारत की इस महत्वपूर्ण परम्परा को स्वीकार करती है।”
Proper efforts are being made by the Global E-Campus to coordinate with the Indian ancient culture and current educational system and to give an ideal direction to the society. Global E-campus should be a welfare and strong medium for society. Very good wishes with divine energy for this.