राज्यसभा में पेश हुआ केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक 2019, जानिए खासियत
नई दिल्ली. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने राज्यसभा में हाल ही में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक, 2019 पेश कर दिया है। यह तीन मानद संस्कृत विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिये जाने से जुड़ा है. यह विधेयक लोकसभा से 11 दिसंबर को पारित किया जा चुका है.
राज्यसभा में बोलते हुए पोखरियाल ने कहा कि इन विश्वविद्यालयों का उद्देश्य छात्रों को संस्कृत की शिक्षा देना है, ताकि उनको संस्कृत भाषा-साहित्य में समाहित ज्ञान प्राप्त हो और वे देश के विकास में सहायक बन सकें. जर्मनी के 14 विश्वविद्यालयों समेत 100 देशों के 250 विश्वविद्यालयों में संस्कृत भाषा की पढ़ाई होती है. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति तीनों महत्वपूर्ण संस्थान हैं जिन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने का प्रस्ताव लाया गया है.
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इन संस्कृत विश्वविद्यालयों का काम संस्कृत भाषा के ज्ञान प्रमोशन करना होगा. साथ ही, उन्नति और विकास के लिए लगातर प्रयास किये जायेंगे. इन विश्वविद्यालयों में अकादमिक अनुशासन, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान के एकीकृत पाठ्यक्रम के लिए विशेष प्रावधान किया जाएगा. इसके अलावा, संस्कृत भाषा और उससे संबद्ध विषयों के समग्र विकास और संरक्षण के लिए लोगों को ट्रैनिंग भी दी जाएगी.
पाठ्यक्रम के अनुसार स्लैबस निर्धारित करना और ट्रैनिंग से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करना. ओपन यूनिवर्सिटी के द्वारा डिग्री, डिप्लोमा, और प्रमाण पत्र दिए जाना. ओपन यूनिवर्सिटी जैसी प्रणाली के माध्यम से दूसरी सुविधाएं भी प्रदान करना इसका हिस्सा होगा. ये यूनिवर्सिटी संस्कृत और उससे जुड़े विषयों में शिक्षा के लिए निर्देश प्रदान करेगी.
इस केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी की नीतियों की समीक्षा अदालत करेगी और इसके विकास के लिए आईडिया देगी. एक कार्यकारी परिषद होगा जो कि मुख्य कार्यकारी निकाय का हिस्सा होगा, जिसमें 15 सदस्य होंगे. केंद्र सरकार द्वारा इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त किया जाएगा।
-इस परिषद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव भी शामिल होगा. इसके अलावा, संस्कृत भाषा के दो विद्वान भी कार्यकारी परिषद में शामिल होंगे.
इसके अलावा, यह कार्यकारी परिषद ही शिक्षकों की भर्ती कर सकेगी और विश्वविद्यालय के लिए फाइनेंस का भी प्रबंधन करेगी. कार्यकारी परिषद ही अकादमी नीतियों को सुपरवाइज करने का काम करेगी. इसके साथ ही एक पाठ्यरक्रम समिति बनाई जाएगी, जो रिसर्च के लिए विषयों को मंजूरी देगी और शिक्षा के स्टैंडर को बढ़ाने में मदद करेगी.