मुंबई यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध 178 कॉलेजों में प्रिंसिपल ही नहीं, RTI के जरिए हुआ चौंकाने वाला खुलासा
81 कॉलेजों में प्रिंसिपल का पद ही नहीं है। यहां प्रिंसिपल के बदले डिरेक्टर का पद है। बाकी बचे 727 कॉलेजों में से 178 कॉलेज बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं। 23 कॉलेजों के बारे में यूनिवर्सिटी के पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।
मुंबई। देश और महाराष्ट्र में एक अव्वल दर्जे के विश्वविद्यालय के तौर पर जानी जाती है। यहां देश-विदेश से स्टूडेंट्स शिक्षा लेने के लिए आते हैं। लेकिन आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनके मुताबिक मुंबई यूनिवर्सिटी से जुड़े 178 कॉलेजों में प्रिंसिपल ही नहीं हैं। ये कॉलेज बिना प्रिंसिपल के ही पदाधिकारियों और कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत अनिल गलगली ने मुंबई विश्वविद्यालय से जुड़े महाविद्यालयों के प्रधानाचार्यों से संबंधित सूची मांगी थी।
मुंबई विश्वविद्यालय के महाविद्यालय शिक्षक मान्यता विभाग ने 38 पन्नों की सूची सौंपी। इस लिस्ट में 808 महाविद्यालयों के नाम हैं जो मुंबई विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। आरटीआई के माध्यम से मिली जानकारियों के मुताबिक इनमें से 81 कॉलेजों में प्रिंसिपल का पद ही नहीं है। यहां प्रिंसिपल के बदले डिरेक्टर का पद है। बाकी बचे 727 कॉलेजों में से 178 कॉलेज बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं। 23 कॉलेजों के बारे में यूनिवर्सिटी के पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं है।
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जिन कॉलेजों में प्रिंसिपल जैसा बेहद अहम पद खाली है और जो पदाधिकारियों और कर्मचारियों की मदद से चल रहे हैं उनमें कई नामी-गिरामी कॉलेजों के नाम हैं। ऐसे कॉलेजों की सूची में केजे सोमय्या, ठाकुर एजुकेशनल ट्रस्ट, शहीद कलानी मेमोरियल ट्रस्ट, तलरेजा कॉलेज, वर्तक कॉलेज, बॉम्बे फ्लाइंग क्लब कॉलेज, रामजी असार कॉलेज, गुरुनानक कॉलेज भांडुप, सेठ एनकेटीटी कॉलेज, जितेंद्र चौहान कॉलेज, मंजरा कॉलेज, रिजवी कॉलेज, अकबर पिरभोय कॉलेज, संघवी कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, विलेपार्ले केलवानी कॉलेज, बॉम्बे बंट्स कॉलेज, आरआर एजुकेशन कॉलेज, एचआर कॉलेज, अंजुमन इस्लाम कॉलेज जैसे कॉलेजों के नाम हैं।
178 कॉलेजों में गडबड़झाला, दलालों का शुरू बोलबाला?
आटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के मुताबिक उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री उदय सामंत और मुंबई यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर सुहास पेडणेकर की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वे ऐसे कॉलेजों पर कार्रवाई करें। नए सिलेबस को मंजूरी देते वक्त उच्च और तकनीकी मंत्री और कुलपति ने किस आधार पर प्रस्ताव मंजूर किया और जब प्रिंसिपल नहीं हैं तो ऐसे कॉलेजों में नए सिलेबस को मंजूरी किस आधार पर दी गई? कहीं इन कॉलेजों में दलालों का बोलबाला तो नहीं बढ़ गया है? इस पूरे मामले की गहराई से जांच करवाने की ज़रूरत है।