Warning: Private methods cannot be final as they are never overridden by other classes in /home/globale1/public_html/wp-content/plugins/wp-rocket/inc/classes/Buffer/class-cache.php on line 425

Warning: Private methods cannot be final as they are never overridden by other classes in /home/globale1/public_html/wp-content/plugins/wp-rocket/inc/classes/traits/trait-memoize.php on line 87

Deprecated: Required parameter $output follows optional parameter $depth in /home/globale1/public_html/wp-content/themes/jannah/framework/classes/class-tielabs-mega-menu.php on line 451

Warning: Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/globale1/public_html/wp-content/plugins/wp-rocket/inc/classes/Buffer/class-cache.php:425) in /home/globale1/public_html/wp-includes/feed-rss2.php on line 8
महर्षि वाल्मीकि Archives - Global E-Campus Tue, 03 Aug 2021 17:10:09 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.3 https://i0.wp.com/www.globalecampus.com/wp-content/uploads/2020/10/cropped-transperent.png?fit=32%2C32&ssl=1 महर्षि वाल्मीकि Archives - Global E-Campus 32 32 184872219 रामायण के राम : भारत के परिचायक राम https://www.globalecampus.com/ram-is-the-ideal-not-only-of-india-but-of-the-whole-world/ https://www.globalecampus.com/ram-is-the-ideal-not-only-of-india-but-of-the-whole-world/#respond Tue, 03 Aug 2021 17:10:09 +0000 https://www.globalecampus.com/?p=7455 राम का नाम सुनते ही मन में स्वतः एक आलौकिक छवि उभरती है,जो भारत एवं भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन कराती है।भारत के इसी छवि का दिग्दर्शन राम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि ने अपने रामायण में सजीवता से निरूपित किया है। यथा- “सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः। आर्यः सर्वसमश्वचैव सदैव प्रियदर्शनः। ।” रामायण भारतीय इतिहास का …

The post रामायण के राम : भारत के परिचायक राम appeared first on Global E-Campus.

]]>
राम का नाम सुनते ही मन में स्वतः एक आलौकिक छवि उभरती है,जो भारत एवं भारतीय संस्कृति का दिग्दर्शन कराती है।भारत के इसी छवि का दिग्दर्शन राम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि ने अपने रामायण में सजीवता से निरूपित किया है।
यथा-
“सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः।
आर्यः सर्वसमश्वचैव सदैव प्रियदर्शनः। ।”

रामायण भारतीय इतिहास का पहला ऐतिहासिक ग्रंथ है, जो राम के चरित्र के माध्यम से भारतीय संस्कृति का निष्पक्ष और सुसंगत निरूपण प्रस्तुत करता है। वैसे तो आप सभी राम के विषय में बहुत कुछ जानते हैं।जहां तक राम को जानने की बात है , जो राम को जान लेता है, वह तो ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है।

भारतीय मनीषियों की कल्पना कहें या यथार्थ का चित्रण ; राम भारत की संस्कृति में ऐसे रचे बसे हैं, जैसे तन में प्राण । प्राण के बिना तन का अस्तित्व नहीं और तन के बिना प्राण की अभिव्यक्ति भी नहीं , ठीक उसी तरह हैं राम। भारत देश के अस्तित्व के पर्याय राम हैं और राम की अभिव्यक्ति का पर्याय यह भारत देश । प्राचीन भारतीय इतिहास का यदि हम अध्ययन करना चाहते हैं, तो हमें राम के चरित्र का बोध अनिवार्य रूप से होना चाहिए । राम का चरित्र स्वयं में एक शिक्षाशास्त्र ,है, अर्थशास्त्र है ,राजनीति शास्त्र है ,प्रबंध शास्त्र है, योग शास्त्र है ।

यथा-
“वेदवेदांगतत्त्वज्ञो धनुर्वेद च निष्णात ।।” …..

भारतीय इतिहासकारों में अग्रगण्य महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय संस्कृति के प्राण राम के चरित्र को बहुत ही सुबोध, बोधगम्य ,हृदयस्पर्शी बनाने का कार्य किया है । महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में पद्यात्मक शैली से राम के चरित्र का अनुपम निरूपण किया है ।राम के चरित्र का यह महाकाव्य रामायण के नाम से विख्यात है।यथा-
उदारवृत्तार्थपदैर्मनोरमे-
स्तदास्य रामस्य चकार कीर्तिमान्।
समाक्षरैः श्लोकशतैर्यशस्विनो
यशस्करं काव्यमुदारदर्शनः। ।

रामायण के एक -एक शब्द में राम की कथा राम के चरित्र ,राम के कृतित्व और व्यक्तित्व का चित्र प्रस्तुत होता है ,जो सजीव और जीवंत दिखायी पड़ने लगता है। महर्षि वाल्मीकि ने बहुत ही कुशलता और दक्षता से प्राचीन भारतीय इतिहास का लेखनी के माध्यम से जीवंत सजीव प्रसारण हम सभी को उपलब्ध कराया है ।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने अद्भुत ज्ञान कौशल से रामायण में राम के चरित्र के साथ ही उस समय की भौगोलिक परिस्थित,प्राकृतिकवातावरण ,जलवायु,,राज्य-संगठनप्रणाली,राजव्यवस्था,राजनीति , युद्धनीति ,रक्षानीति ,अर्थनीति समाजनीति, जातियों ,उप- जातियों के संबंध का बहुत ही सारगर्भित वर्णन किया है। मनोवैज्ञानिक धरातल पर पारिवारिक कलह और उसके परिणामों का वर्णन करते हुए, एकता का भी सजीव चित्रांकन किया है ,उन्होंने राम के चरित्र के माध्यम से भारतीय संस्कृति और उसकी आध्यात्मिक प्राण चेतना को रेखांकित करने का प्रयास किया है ।
रामायण में राम के माध्यम से त्याग एवं अहिंसा को बहुत ही सजगता और सरलता से व्याख्यायित करने का प्रयास किया गया है।
महर्षि वाल्मीकि की रामायण ने राम के पिता राजा दशरथ के व्यक्तित्व और चरित्र को दिखाने का प्रयास किया है।यथा-
तस्यां पुर्यामयोध्यायां वेदवित् सर्वसंग्रहः।
दीर्घदर्शीं महतेजाः पौरजानपदप्रियः। । ……
यथा मनुर्महातेजा लोकस्य परिरक्षिता।
तथा दशरथो राजा लोकस्य परिरक्षिता। ।
राजा दशरथ द्वारा पालित आयोध्या के भौतिक समृद्धि के साथ आध्यात्मिक उन्नति का भी बहुत ही रोचक वर्णन किया है ।यथा-
कपाटतोरणवतीं सुविभक्तान्तरापणाम्।
सर्वयन्त्रायुधवतीमुषितां सर्वशिल्पिभिः ।।….
सर्वे नराश्च नार्यश्च धर्मशीलाः सुसंयताः।
मुदिताः शीलवृत्ताभ्यां महर्षय इवामलाः। ।
रामायण ने अपने राम के माध्यम से गुणी पिता की गुणी संतान के सिद्धांत को पुष्ट किया है।यथा-
“जीर्णानामपि सत्त्वानां मृत्युर्नायाति राघव।
आरोगप्रसवा नार्यो वपुष्मन्तो हि मानवाः।।”…
“हर्षश्चाभ्यधिको राजञ्जनस्य पुरवासिनः।
काले वर्षति पर्जन्यः पातयन्नमृतं पयः।।”
रामायण में एक तरफ राम के द्वारा शासित अयोध्या के जनमानस का वर्णन है,तो वही आतंक के पर्याय भौतिक समृद्धि से संपन्न राष्ट्र लंका में रावण की राज्य- नीति और विदेश- नीति का भी सूक्ष्मता से वर्णन किया गया है ।यथा-
“समासाद्य च लक्ष्मीवाँल्लंकां रावणपालिताम्।
परिखाभिः समद्माभिः सोत्पलाभिरलंकृताम्। । ” …
” काञ्चनेनावृतां रम्यां प्राकारेण महापुरीम्।
गृहैश्च गिरिसंकाशैः शारदाम्बुदसंनिभैः। ।”….
“तत् तु माल्यवतो वाक्यं हितमुक्तं दशाननः।”…
“धर्मव्यवस्थाभेत्तारं मायास्रष्टारमाहवे।
देवासुरनृकन्यानामाहर्तारं ततस्ततः।।”
रामायण में वर्णित राम के इस ऐतिहासिक चरित्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि विज्ञान की उन्नति से भौतिक समृद्धि तो प्राप्त की सकती है परन्तु आध्यात्मिक उन्नति के विना शांति सम्भव नहीं। आध्यात्मिक उन्नति से ही सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है। यदि हम हम भौतिक संस्कृति का दुरुपयोग करते हैं, तो चारों तरफ आतंक का सृजन होता है , भय का वातावरण सृजित होता है ,ज्ञान और विज्ञान के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है ,सामाजिक व्यवस्था भंग होती है ,पर्यावरण दूषित होता है वहीं यदि हम उस ज्ञान और विज्ञान का सकारात्मक प्रयोग करते हैं तो सुख शांति आनंदमयी वातावरण का सृजन होता है, भयमुक्त समाज का निर्माण होता है, रोग मुक्त समाज का निर्माण होता है ।
राम के चरित्र के माध्यम से रामायण ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि एक शासक को किस प्रकार होना चाहिए ।शासक के शरीर का गठन ,उसकी वाणी उसके ज्ञान का स्तर, उसकी नम्रता ,राष्ट्र के प्रति सजगता ,जनमानस के प्रति विनम्रता और रक्षा- नीति के कौशल का ज्ञान ,संभाषण कला ,विभिन्न कलाओं का ज्ञान जैसे संगीत कला ,चित्रकला मूर्तिकला ,आयुर्वेद -शास्त्र तथा अर्थशास्त्र का सम्यक ज्ञान कैसे होना चाहिए । यथा-
” बुद्धिमान् नीतिमान् वाग्मी श्रीमान् शत्रुनिबर्हणः।
विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवो महाहनुः। । ” …..
“अरोगस्तरुणो वाग्मी वपुष्मान् देशकालवित्।”….
“सर्वविद्याव्रतस्नातो यथावत् साङ्गवेदवित्।
” इष्वस्त्रे च पितुः श्रेष्ठो बभूव भरताग्रजः। ।”…
“शास्त्रज्ञश्च कृतज्ञश्च पुरुषान्तरकोविदः।”….

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में राम के व्यक्तित्व का निरूपण करते हुए उल्लेख किया है कि राम बहुत ही सुंदर हैं ,बलशाली हैं, मधुर भाषी है ,संगीत कला के अद्वितीय जानकार हैं ,गायन विद्या और वादन विद्या दोनों में पारंगत हैं, अर्थशास्त्र ,राजनीति -शास्त्र, समाज नीति के योग्य विद्वान हैं। यथा-
“इक्ष्वाकुवंशप्रभावो रामो नाम जनैः श्रुतः ।
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी ।।”…
“बुद्धिमान् मधुराभाषी पूर्वभाषी प्रियंवदः।
वीर्यवान्न च वीर्येण महता स्वेन विस्मितः।।”….
” गान्ध्रवे च भुवि बभूव भरताग्रजः। ” …
“रामः सत्पुरुषो लोके सत्यः सत्यपरायणः।”….
“सत्यवादी महेष्वासो वृद्धसेवी जितेन्द्रियः। ।”

राम अपने समय के वैश्विक राजनीति में अद्वितीय वक्ता ,विद्वान ,पराक्रमी ,युद्ध कौशल में प्रवीण हैं।राम अपने माता पिता के परम भक्त हैं ,तो वहीं अपने बड़ों का बहुत ही आदर किया करते हैं। एक तरफ राम पारिवारिक एकता के सजग प्रहरी दिखायी देते हैं तो दूसरी ओर राम जनप्रिय लोकप्रिय भी हैं, क्योंकि वह सभी में अपने स्वरूप का ही दर्शन किया करते हैं। यदि राम परात्पर ब्रह्म हैं तो उन्होंने सभी जीवों में अपने स्वरूप के बोध का ज्ञान अपने चरित्र के माध्यम से प्रस्तुत किया है । रामायण के राम अपने चरित्रबल से पितृ- भक्ति, मातृ- भक्ति के साथ ही वृद्ध -जनों के आदर की महत्ता प्रकट करते हैं।

रामायण के राम नारी समाज के उत्थान हेतु संकल्पबद्ध दिखायी देते हैं ।राम अहल्या को उनके दुर्बल मनोवृत्तिक अपराध के कारण पति ऋषि गौतम द्वारा परित्यक्त जीवन से मुक्त करते हैं।राम अहल्या के प्रायश्चित और तप को आदर देते हुए, उनके चरणों का स्पर्श करते हैं।रामायण के राम एक तरफ समाज मनोवैज्ञानिक की तरह मनोवृतियों के सुधार को महत्व देने की आदर्श परम्परा स्थापित करते हैं। यथा-
” राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा। “
तो दूसरी तरफ राम राक्षसी मनोवृत्ति से सम्पन्न नारी को भी दण्डित करने की नव्य परम्परा का अनुमोदन करते हुए दिखाई देते हैं।वह अपने गुरु विश्वामित्र के नीति को अपने चित्त में धारण कर समाज में गुरुजनों की शिक्षा को महत्व देने का दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं।यथा-
नहि तेज स्त्रीवधकृते घृणा कार्या नरोत्तम।
चातुर्वर्ण्यहितार्थं हि कर्तव्यं राजसूनुना।।…..
न ह्येनामुत्सहे हन्तुं स्त्री स्त्रीस्वाभावेन रक्षिताम् ।…..
तामापतन्तीं वेगेन विक्रान्तामशनीमिव। ।
शरेणोरसि विव्याध सा पपात ममार च ।

रामायण के राम राक्षसी वृत्तियों के विनाश के लिए ताड़का का वध करते हुए स्पष्ट करते हैं कि हिंसक पुरुष हो अथवा नारी,वह है समान दण्ड का अधिकारी ।इसप्रकार राम नारी -पुरुष के भेद से दूर समानदण्ड प्रक्रिया की मान्यता स्थापित करते हैं। राम के द्वारा वाली और रावण आदि आततायियों का वध करना ,यह शिक्षा देता है कि यदि कोई भी नारी या पुरुष अथवा अन्य प्राणी आतंक का पर्याय बन जाए और वह हिंसक वृत्ति से प्रेरित हो प्राणियों को मारने लगे ,सामाजिक व्यवस्था को भंग कर अशांति का सृजन करने लगे, तो उसका वध न्यायोचित है।इस प्रकार की हिंसा एक तरह से अहिंसा का ही पालन है। रामायण के राम द्वारा वाली वध के पश्चात उनके छोटे भाई सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य प्रदान करना तथा रावण वध के पश्चात रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राज्य प्रदान कर उनकी शासन व्यवस्था को मान्यता देना ,उनकी उदार विदेश-नीति का अद्वितीय उदाहरण है। रामायण के राम लोक परंपराओं को मानने वाले राजा के रूप में प्रस्तुत हैं।

राम राजा के रूप में एक प्रजा- वत्सल शासक के रूप में दिखाई देते हैं। राम जाति -भेद ,लिंग -भेद से दूर सुराज्य की स्थापना के प्रति सजग, कर्तव्यनिष्ठा से तत्पर हैं। रामायण में राम भारतीय संस्कृति और दर्शन के रक्षक ,आदर्श,त्यागी ,योगी व्यक्तित्व के रूप परिलक्षित होते हैं।यथा-
“व्यक्तमेष महायोगी परमात्मा सनातनः।”…
” नाकाले म्रियते कश्चिन्न व्याधिः प्राणिनां तथा।
नानर्थो विद्यते कश्चिद् रामे राज्यं प्रशासति।।”

रामायण के राम वस्तुतः भारत और उसकी संस्कृति के साक्षात स्वरूप और उसके परिचायक हैं।राम भारत ही नहीं अपितु समस्त विश्व के आदर्श नियंता हैं।इसप्रकार हम कह सकते हैं –
“श्रीराम: शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गति ।”

The post रामायण के राम : भारत के परिचायक राम appeared first on Global E-Campus.

]]>
https://www.globalecampus.com/ram-is-the-ideal-not-only-of-india-but-of-the-whole-world/feed/ 0 7455