आसान नहीं है ऑनलाइन शिक्षा की राह, पढ़ाने में गुरूजी को आ रही हैं ये समस्याएं
आशुतोष शुक्ला(नई दिल्ली). उच्च शिक्षा में ऑनलाइन प्रणाली के लिए जारी सर्कुलर के बाद विश्वविद्यालय और उनके अधीनस्थ विद्यालय क्रियाशील तो हो गए हैं। कई विद्यालयों ने तो ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई भी शुरू करा दी है। लेकिन तकनीकी जानकारी का अल्प ज्ञान शिक्षकों के लिए समस्या बना हुआ है। जिसके अभाव में ऑनलाइन व्यवस्था विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच सेतु निर्मित नहीं कर पा रही है। जो पठन-पाठन के लिए आवश्यक है। ऐसे में कई प्रश्नों के उत्तर खोजा जाना अभी बाकी है।
इन विषयों को लेकर ग्लोबल-ई-कैंपस ने सीतापुर के सेक्रेट हार्ट डिग्री कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में श्री कृष्णा एजुकेशन इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल डॉ अरुण त्रिपाठी से बात की.
शिक्षकों में तकनीकी जानकारी का अभाव – डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि शिक्षक निसंदेह अपने विषय के कुशल जानकार हैं, लेकिन उन्हें तकनीकी जानकारी कम ही है। दैनिक जीवन में वह फेसबुक व्हाट्सएप का प्रयोग तो रुचि से करते हैं, लेकिन सॉफ्टवेयर का प्रयोग नहीं करते। ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाने के लिए वीडियो क्लिप बनाना, साउंड रिकॉर्ड करना फिर उन्हें जोड़ना कंप्यूटर या मोबाइल पर लिखना सहित कई तकनीकी चीजें या तो फिर उन्हें आती ही नहीं या इन कार्यों में वे इतने विवेकशील नहीं हैं। क्योंकि इन कार्यों के लिए साउंड एडिटिंग, वीडियो एडिटिंग जैसी चीजों की महती आवश्यकता पड़ रही है।
स्लो इंटरनेट – यूं तो इंटरनेट की सुविधा बहुत तेज है। लेकिन कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कई बच्चों को जोड़कर पढ़ाने पर अब भी यह हैंग हो जाता है। इससे बात बीच में ही छूट जाने जैसी समस्याएं प्रस्तुत होती हैं.
तकनीकी में बेहतर साबित हो रहे हैं बच्चे – केंद्रीय विद्यालय के हिंदी के प्रवक्ता और उत्तराखंड शिरोमणि की उपाधि प्राप्त शिक्षक डॉ विपिन पाण्डेय बताते हैं कि बच्चों की आयु सीखने की होती है और उनमें अपेक्षाकृत ऊर्जा भी ऊर्ध्वगामी होती है। ऐसे में शिक्षार्थियों में तकनीकी के प्रति रुचि सोने पर सुहागे का काम करती है। वह वीडियो करना, काटना पीछे की आवाजों को साफ करके क्लीएरिटी लाना। शिक्षकों की अपेक्षा बेहतर तरह से और शीघ्र ही कर लेते हैं।
वहीं अध्यापकों को अपने विषय पर बेहतर ज्ञान तो है, समझाने के लिए ढेरों सरलतम उदाहरण हैं, लेकिन आधुनिक सॉफ्टवेयर में उनका ज्ञान शुरू होते ही अपने अंतिम छोर पर पहुंच जाता है. इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाना उतना सहज नहीं है जितना सुनने में मालूम होता है। हालांकि, इतने पर भी शिक्षक पढ़ा रहे हैं और नई तकनीक को सीखने का निरंतर प्रयास भी कर रहे हैं।
चिड़ावा चिलौला विद्यालय के शिक्षक आलोक बताते हैं कि यूट्यूब से मिलने वाली जानकारी बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है। बहुतायत यूट्यूब के लिंक और कई बार अपने बनाए वीडियोस बच्चों को भेजते है। शिक्षिका प्रीति ठाकुर बताती हैं कि निश्चय ही काम रेंगने वाली गति से शुरू तो हो गया है। लेकिन इसमें निरंतर प्रवाह और गति तभी आ पाएगी जब तकनीकी व्यवस्थाएं की जाएंगी. इस पर सुझाव देते हुए प्रीति ने कहा कि सरकार को विद्यालयों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी व्यवस्था करनी चाहिए। जिसमें शिक्षक आकर पढ़ाऐं और वहां त्वरित रूप से शिक्षार्थियों तक पहुंच सके। इससे शिक्षकों का जो समय सॉफ्टवेयर से माथापच्ची करने में बीत रहा है वह छात्रों को कुछ सिखाने में व्यतीत होगा l
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